सलत का आरंभ

प्रार्थना पूरा करने से पहले कुछ कार्य करना आवश्यक होता है, जो पैगम्बर मोहम्मद (उन्हें शांति मिले) की परम्परा के अनुसरण में ध्यानप्रार्थना के आंतरिक पहलुओं को चित्रित करता है। उन्हें प्रार्थना की प्रारंभिकता कहा जाता है।

सय्यद मोहम्मद नूरबख्श ने कहा है: "चार चीजों को चार चीजों से साफ करो; अपने चेहरे को आँखों के आँसुओं से, अपनी जिह्वा को सृष्टिकर्ता के स्मरण से, अपने ह्रदय को अपने रक्षक के प्रति आभार से और अपने शरीर को वापस ईश्वर को सुपुर्द करो।"

प्रार्थना की प्रारंभिकताओं में सभी अशुद्धताओं को स्वच्छ करना, शरीर को ढंकना, किबला(बिंदु जिस तरफ प्रार्थना होती है) को स्वीकर करना प्रार्थना-स्थल पर अतिक्रमण नहीं हो और प्रार्थना के समय की जानकारी हो। 1

शुद्धिकरण

प्रार्थना में शुद्धिकरण का बाहरी अर्थ शरीर की स्वच्छता एवं विकारों से मुक्ति है; इसका आंतरिक अर्थ है स्वयं को गलत कर्मों, पाप तथा चारित्रिक दोष से शुद्ध करना और ह्रदय को संसार के प्रति प्रेम से शुद्ध करना है। बाहरी स्वच्छता पर विशेष जोर दिया गया है, क्योंकि जो ईश्वर को प्रिय नहीं हैं, उन सबके प्रति पश्चाताप तथा खेद करने से आंतरिक शुद्धता प्राप्त हो जाता है।

शुद्धिकरण के तत्वों में, सम्मान सभी मामलों में हर इंसान के अधिकारों के लिए है।
शेख शिबली ने कहा है: " आप जब भी अपनी शांतिपूर्ण स्थिति में हों, आपने अपने बकायों की भरपाई की है, और जब भी मनुष्य आपसे सुरक्षित हो, आपने उनके अधिकारों की पूर्ति की है।"
पैगम्बर मोहम्मद (उन्हें शांति मिले) ने कहा है: "ईश्वर के प्रति समर्पण में सच्चा साधक वैसे स्वच्छ, शुद्ध जल की तरह है,जैसे वह आकाश से झरता है।" 2

शरीर को ढंकना

"हे आदम के बच्चों! हमने तुम्हें शर्म को ढंकने के लिए वस्त्र का आवरण दिया है, वह तुम्हारा अलंकरण भी है। लेकिन धर्म का आवरण ईश्वर के ऐसे प्रतीकों में सर्वोत्तम है; ताकि उन्हें चेतावनी भी मिल सके।" (पवित्र कुरआन, 7:26)

प्रार्थना के समय निजी भागों को दूसरों से और खुद से आवरण करना बेहद आवश्यक है। बाहरी तौर पर, इसका मतलब निजी भागों को ढंकना है लेकिन वास्तव में यह स्वयं की इच्छाओं पर दया, सत्य, धर्मपरायणता और ईमानदारी का आवरण पहनना है, तब ईश्वर की नजर में अशुद्धता और कुकर्म से मुक्त होना है। 3

प्रार्थना का स्थान और इसकी पवित्रता

जहाँ प्रार्थना की जाए, उस स्थान का पवित्र होना, प्रार्थना की अन्य प्रारंभिकताओं में से एक है। इसका निहितार्थ है प्रार्थना करनेवाले व्यक्ति के ह्रदय का ईश्वर के सिवा अन्य सभी बातों से मुक्त होना है।

साधक का ह्रदय धार्मिक अनुष्ठानों और मानवीय गुणों की कृपा के प्रति निश्चित तौर पर सजग होना चाहिए। ह्रदय खुदा का मस्जिद है और यह अनाधिकृत या अशुद्ध नहीं होना चाहिए और ईश्वर की असीम कृपा की स्वीकृति में बाधक नहीं हो। 4

प्रार्थना का समय

मोलाना हज़रत शाह मकसूद सादेह अंघा कहते हैं: "वास्तव में, समय उस पल को सूचित करता है जब साधक अपने परम पिता परमेश्वर के स्मरण में लीन हो।" 5

समय प्रार्थना की प्रारंभिकताओं में से एक है और धार्मिक अनुष्ठान के अनुसार, प्रार्थना के लिए निर्धारित समय को परिलक्षित करता है।"

हज़रत पैगम्बर (उन्हें शांति मिले) की शरि’यत के अनुसार पाँच दैनिक प्रार्थनाओं में 17 रक’आत (साधक प्रणाम के क्रम में झुकने की संख्या में विभाजित भाग के रुप में प्रार्थना) होते हैं। 6

प्रत्येक प्रार्थना दी गयी समय अवधि में की जानी है:

ऊषा-काल प्रार्थना (सोबह):

2 रक’आत

ऊषा-काल के धुँधले प्रकाश के दौरान

 

दोपहर प्रार्थना (ज़ोह’र):

4 रक’आत

दोपहर से दोपहर बाद की प्रार्थना तक

 

दोपहर बाद प्रार्थना (अश्र)

4 रक’आत

दोपहर की प्रार्थना के बाद और सूर्यास्त से पहले

 

सूर्यास्त प्रार्थना (मघरेब):

3 रक’आत

सूर्यास्त से रात्रि प्रार्थना करने तक

 

रात्रि प्रार्थना (अशा):

4 रक’आत

सूर्यास्त प्रार्थना करने के बाद और मध्यरात्रि से पहले तक

 

हज़रत शाह मकसूद सादेह अंघा ने कहा है:

सूर्यास्त की प्रार्थना एक बीज को बोने जैसा है।
रात्रि की प्रार्थना इसके जडों को अंधकार और प्रच्छादित करने और मजबूत बनाने जैसा है।
सुबह की प्रार्थना जमीन से पहली पौध का उगना है।
दोपहर की प्रार्थना इसकी शाखाओं और पत्तियों का विकास करता है।
दोपहर बाद की प्रार्थना समर्पण के वृक्ष का फल देता है।
और यह कहा गया है कि जो कोई दोपहर बाद की प्रार्थना की अवहेलना करता है, अपने और अपने कुटुम्बों के साथ अन्याय करता है। 7

प्रक्षालन (वजू)

प्रार्थना पूर्व प्रक्षालन, प्रार्थना की प्रारंभिकताओं में से एक है और इसका पालन आवश्यक है। प्रक्षालन का उद्देश्य सभी गलतियों से पूर्णतया शुद्ध करना है। इसका मतलब सबके हाथों को धोना निषिद्ध है; और ईश्वर के प्रति आपकी संपूर्ण जागरुकता होना; और स्वयं की इच्छाओं एवं सांसारिक संबद्धता का परित्याग; और ईश्वर की तरफ जाना ही ईमानदारी है।

सिद्धांत के द्वारा, मस्तिष्क के परित्याग का मतलब है- सभी गलत विचारों, संदेहों, आदर्शों से धुलना। सिर को धोने का आशय ईश्वर के साथ सभी मानसिक शिक्षकों की दृढता है। पैरों को धोने का मतलब है पिछली गलतियों को सुधारना और ईश्वरीय यात्रा पर कदमों की दृढता और शुद्धता। 8

प्रक्षालन करना: 9

  • नीयत
  • सांसारिक संबद्धताओं से दूर होने के उद्देश्य से प्रक्षालन करने के लिए एकाग्रता

  • चेहरा
  • अपने दायें हाथ की हथेली में पानी भरें और अपने चेहरे को माथे से ठुड्ढी तक ठीक से धोयें। 3 बार

  • भुजाएं
  • अपने बायें हाथ की हथेली में पानी भरें। दायीं कोहनी क़े नीचे से ऊंगलियों की ओर पानी गिरायें कि बांह के उपर और नीचे का भाग में धुल जाये। अपने दायें हाथ की हथेली में पानी भरें। बायीं कोहनी क़े नीचे से ऊंगलियों की ओर पानी गिरायें कि बांह के उपर और नीचे का भाग में धुल जाये।

  • सिर
  • अपने हाथों को फिर से गीला किए बिना, सिर के उपरी भाग से ललाट तक दाहिनें हाथ की उंगलियों से पोछें।

  • पैर
  • अपने हाथों को फिर से गीला किए बिना, दायें पैर की उंगलियों से एडी तक दायें हाथ से पोछें। अपने हाथों को फिर से गीला किए बिना, बायें पैर की उंगलियों से एडी तक दायें हाथ से पोछें।

    क़िबला (बिन्दु जिसकी तरफ प्रार्थना की जाती है)

    सर्वशक्तिमान ईश्वर ने कहा है: "अपने लिए, मैंने अपना चेहरा उनकी तरफ सीधे और सच्चे रुप में बनाया है, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया; और मै6 कभी ईश्वर को साथी नहीं दे पाया।"(पवित्र कुरआन, 6:79)

    ह्रदय के क़िबला के प्रति भौतिक रुप से प्रार्थना करनेवाले इंसान और प्रार्थना के लिए एक आवश्यक तथा अपरिहार्य शर्त है, जो साधक का ह्रदय और ईश्वर का घर है। इसलिए, पूरे संसार में जो भी प्रार्थना करते हों, वे किबला के आध्यात्मिक केंद्रता और चुंबकीयता की संपूर्ण परिधि में रहेंगे। 10

    पुकार या अज़ान

    मक्का(क़िबला).की तरफ खडे हों

    निम्नलिखित को दुहरायें: 11

    अल्लाहू अकबर

    4 बार

    अश’हदो अन ला-एलाहा- एल्लाल्लाह

    2 बार

    अश’हदो अन्ना मोहम्मदन रसूल-उल-अल्लाह

    2 बार

    अश’हदो अन्ना अली’यान वली’योल्लाह

    2 बार

    हय्या अलास-सलत

    2 बार

    हय्या अलल-फलह

    2 बार

    हय्या अल ख़य्र-अल-अमल

    2 बार

    अल्लाहू अकबर

    2 बार

    ला-एलाहा-एल्लाल्लाह

    2 बार

    "खुदा सबसे महान है।"
    मैं साक्षी हूँ कि ईश्वर और नहीं, बस अल्लाह हैं।
    मैं साक्षी हूँ कि मोहम्मद ईश्वर के संदेशवाहक हैं।
    मैं साक्षी हूँ कि अली ईश्वर द्वारा नियुक्त मार्गदर्शक हैं।
    सलत से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    मोक्ष से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    सर्वोत्तम कर्म से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    खुदा सबसे महान है।
    केवल अल्लाह ही ईश्वर है।"

    उदय या घमे

    खडे होने की स्थिति में निम्नलिखित दुहरायें: 12

    अल्लाहू अकबर

    2 बार

    अश’हदो अन ला-एलाहा- एल्लाल्लाह

    2 बार

    अश’हदो अन्ना मोहम्मदन रसूल-उल-अल्लाह

    2 बार

    अश’हदो अन्ना अली’यान वली’योल्लाह

    2 बार

    हय्या अलास-सलत

    2 बार

    हय्या अलल-फलह

    2 बार

    हय्या अल ख़य्र-अल-अमल

    2 बार

    घड घमाते-सलत

    2 बार

    अल्लाहू अकबर

    2 बार

    ला-एलाहा-एल्लाल्लाह

    1 बार

    "खुदा सबसे महान है।"
    मैं साक्षी हूँ कि ईश्वर और नहीं, बस अल्लाह हैं।
    मैं साक्षी हूँ कि मोहम्मद ईश्वर के संदेशवाहक हैं।
    मैं साक्षी हूँ कि अली ईश्वर द्वारा नियुक्त मार्गदर्शक हैं।
    सलत से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    मोक्ष से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    सर्वोत्तम कर्म से आंतरिक जीवन प्राप्त करें।
    प्रार्थना समाप्त हुई।
    खुदा सबसे महान है।
    केवल अल्लाह ही ईश्वर है।"


    _____________________________
    संदर्भ:
    1. Molana Shah Maghsoud Sadegh Angha, Al-Salat, The Reality of Prayer in Islam , Washington D.C: M.T.O. Shahmaghsoudi Publications®, 1998, pp. 13-14.
    2. Ibid. pp. 24-25
    3. Ibid. p. 26
    4. Ibid. pp. 26-27
    5. Ibid. p. 32
    6. Islamic Daily Prayer Manual , Riverside, CA: M.T.O. Shahmaghsoudi Publications®, 1994, p. 3)
    7. Molana Shah Maghsoud Sadegh Angha, Al-Salat , p. 20
    8. Ibid. pp. 30-31
    9. Islamic Daily Prayer Manual, p. 4
    10. Molana Shah Maghsoud Sadegh Angha, Al-Salat, pp. 48-49
    11. Islamic Daily Prayer Manual, p. 5
    12. Ibid. p. 6

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