सलत(दैनिक प्रार्थना)

" वह इंसान जो प्रार्थना करता है, स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक देता और इसके दरवाजे उनके लिए ही खुलेंगे, जो दस्तक देते हैं।"
पैगम्बर मोहम्मद (उन्हें शांति मिले)

"सूर्यास्त प्रार्थना किसी बीज की बुवाई के समान है, रात्रि प्रार्थना है इसके जडों को अंधकार एवं आश्रय में विकसित करने के समान है, सुबह की प्रार्थना मैदान में पहली पौध के उगने के समान है, दोपहर की प्रार्थना इसकी शाखाओं और पत्तियों के विकास जैसी है, दोपहर बाद की प्रार्थना भक्ति के वृक्ष के फल के समान है और यह कहा जाता है कि जो भी अपने दोपहर बाद की प्रार्थना को नज़रअंदाज करता है, वह स्वयं पर और अपने रिश्तेदारों पर अन्याय करता है।" [1]

सलत या प्रार्थना इस्लाम में प्रमुख संघटकों और इस्लाम के पैगम्बर हजरत मोहम्मद(उन्हें शांति मिले) की शिक्षाओं में से एक है। अल-सलत में, मैलाना-अल-मोज़म हज़रत शाह मकसूद अंघा कहते हैं:

"हे प्यारे, धर्म का सिद्धांत अनुशासन और सदप्रयास में निहित है। इस्लाम के पवित्र सिद्धांतों के तत्वग्यान के पश्चात, पहला कर्तव्य प्रार्थना है, जिसमें इन सिद्धांतों का तत्वज्ञान दिया गया है। साधक के लिए उचित आचरण का सच प्रार्थना ही है, और यह दानवी आत्मा को दिव्य आत्मा में रूपांतरित करने के लिए आवश्यक है ताकि यह ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के योग्य हो सके।"

प्रार्थना का महत्व और इसकी भव्यता ऐसी है कि प्रार्थना को "धर्म का स्तंभ" कहा जाता है, और वास्तव में, यह इस्लाम और आस्था का प्रतीक है।[2]


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संदर्भ:
1. Sadegh ANGHA, Hazrat Shah Maghsoud, Al-Salât, the reality of Prayer in Islam, M.T.O. Shahmaghsoudi Publications®, Riverside, CA, USA, 1998, p.20.
2. Ibid, p.1.

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