हिजाब - उपेक्षा का आवरण

हिजाब एक प्रकार से उस स्थिती के प्रति उपेक्षा का एक आवरण है जो साधक को ईश्वर के प्रति समर्पण व एकात्मता साध्य करने से रोकता है और आत्मिक वास्तविकता के अनुभव के मार्ग में अवरोध बनता है। हमारे नकारात्मक स्वभाव के चिन्ह जैसे स्वार्थी स्वभाव, लालच, भौतिकवाद, अहंकार, ईर्ष्या, हमारी इच्छाएं और हमारी सीमित संवेदनाएं जिनके चलते दिव्य ईश्वरीय प्रकाश हमारे हृदय में प्रवेश नही कर पाता॥ इसके चलते हम अपनी वास्तविकता से परे नही हो पाते, हमारा ''मैं'' इन सभी आवरणों के मध्य कहीं खो जाता है।

हमारी सीमित सोच इस प्रकार के आवरण को जन्म देती है॥ हमाराधर्म हमें जो शिक्षाएं देता है, उन्हे हम ध्यान से सुनते हैं, परंतु शब्द समस्त वास्तविकता को उजागर नही करते, इसीलिये वास्तविकता के स्थान पर हमें अपनी इच्छाएं व आकांक्षाएं ही दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिये, हम जब भी प्रार्थनाएं करते हैं, तब हम उस ईश्वर की याद नही करते बल्कि हम अपनी इच्छा आकांक्षाएं ही याद करते हैं जिनमें भौतिकवाद संबंधी बातें होती हैं। यही इच्छाएं एक आवरण का स्वरुप ले लेती हैं। पाक़ क़ुरआन में कहा गया है कि आवरण हमारी आंखों, श्रवण व अविश्वासी हृदय में स्थित है। सत्य के साधक का प्रमुख लक्ष्य होता है कि किस तरीके से वो इस आवरण को हटाकर सत्य का साक्षात्कार करे। 1

ईश्वर ने उसके हृदय को आवरण में ड़ाल दिया है, उसकी आंखों को भी, जिसके चलते वे तकलीफ पा रहे हैं। पाक़ क़ुरआन 2:7

पैगम्बर मोहम्मद (ईश्वर उन्हे शांति में रखे) कहते हैं: साधक को अपने ईश्वर से मिलने से रोकने के लिये 70,000 से भी अधिक आवरण मौजूद है। अंधेरे का आवरण, हमारी सीमाओं के चलते बनाया गया है। प्रकाश का आवरण इस यात्रा के पड़ावों के साथ संबद्घ है जो कि आत्मज्ञान अथवा सेय वा सोलूक की ओर की जाती है और जिसमें साधक द्वारा अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिये कुछ विशेष पड़ाव पार किये जाते हैं। मार्ग में आनेवाला कोई भी अवरोध रुपी आवरण, अपने आप ही इस यात्रा को धीमा बना देता है।

ये समय है जब हम अपने सन्देश को उन्हे अच्छे से समझा सके, वो भी उनके क्षितिजों के अनुसार उसे सही बनाकर, जिससे ये सत्य उनके समक्ष उद्‌घाटित हो सके फिर भी ये काफी नही होगा ये जानने के लिये कि क्या वे सब कुछ जान चुके हैं?

पाक़ क़ुरआन - 41:53


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संदर्भ:
1- "Words do not convey the meanings": From Molana Shah Maghsoud Sadegh Angha, Dawn (Verdugo City Ca: M.T.O. Shahmaghsoudi Publications®, 1991).

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